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गीत(16/14) अब वसंत से महका उपवन, घर सुरभित है साजन से। धरती अंबर सब हैं गुंजित, चंचरीक-मधु गायन से।। देता तुष्टि वसंत मात्र ही, सजनी के अरमानों को। मन हो कर ...